Wednesday, August 29, 2018

中国经济发展与减排可共赢

份研究认为,中国积极减排,从而改善能源结构、确保高生产率,中国经济将从中受益。

11月14日发布的这份《中国与新气候经济》报告,属于全球经济和气候委员会的新气候经济项目国别研究成果之一。

《报告》的作者之一、清华大学能源环境经济研究所研究员滕飞说,通过适当的政策设计,2030年达到温室气体排放峰值这一目标对中国经济的负面冲击,可以控制在GDP 的1%之内。如果考虑到其带来的降低空气污染的环境和健康协同效益,相当一部分的经济成本还可以被抵消。

《报告》预测:中国经济增速在2030年将回落至5%。“中国走低碳发展道路是不可避免的。中国必须转型,否则我们无法达到社会经济发展等其他远景。”中国外交部气候变化谈判特别代表高风谈到。

《报告》分析了 增速为7%和4%的情景下所带来的化石能源消费与碳排放结果,结果显示:较快的经济增长,使得碳排放绝对量的减排任务变得更加艰难;但如果中国还可以保持7%的GDP增长率,并从中拿出1%GDP用于节能改造、发展新能源技术等,中国对环境质量的改善将比低速增长率情景下容易得多。

在现有节能减排力度下,由于中国经济更易受到能源价格变动的冲击,受影响的产业部门占GDP的约20%,则接近50%的中国城市到2030年仍存在空气质量不达标的风险,尤其是长三角和京津冀地区的主要城市。能源和经济的结构性问题是不达标的主要原因。

同时,即使中国保持目前的节能政策力度,到2030 年石油的对外依存度将达到75%,天然气对外依存度将超过40%,煤炭也将大幅超出安全高效的科学产能,能源供应和能源安全方面存在巨大压力。

也就是说:如果不采取更积极的减排措施,中国可能付出经济和环境的双重代价。

国家气候变化专家委员会副主任、清华大学低碳经济研究院院长何建坤说道:“按照目前节能减排的政策和力度,中国到2030是不可能实现峰值的,很可能会推后。但现在有目标,有利于促进经济转型,建立起发展新能源的倒逼机制,并采取强有力的措施去实现。”

因此《报告》测算出在加速减排的情景下,中国的能源二氧化碳排放将在2030年左右停止增长并尽快开始下降,2030年的单位 二氧化碳排放强度会比2010年降低约58%。在这一目标下结合严格的末端处理措施和结构调整政策,可以在2030年实现中国主要城市空气质量的全面达标。

未来由于投资回报率的降低,投资拉动的高经济增长趋势是不可持续的,而资源约束对经济增长的负面影响正逐步显现。如果中国不能通过技术进步及生产率的提高部分抵消资源约束的负面作用,则中国有可能陷入低速增长的“中等收入陷阱”。

反之,在维持较高生产率的情形下,中国能保持更好的增长速度,2010-2020年达到7.9%,2020-2030年达到6%, - 达到4.6%。到2030年中国的经济规模将超过美国,并成为世界第一大经济体。

就在上一周,习近平和奥巴马发表了中美气候变化联合声明。《报告》的研究内容将有助于解读中国承诺目标的可行性。基于研究,《报告》建议在产能过剩的高耗能行业和经济相对发达的东部地区,首先引入总量减排目标,并逐步扩展成覆盖所有行业和所有地区的总量减排目标。

首先应对煤炭消费总量进行控制,使煤炭消费总量在2020 年后停止增长,并尽快实现绝对下降。新能源和可再生能源技术将成为未来经济新的增长点。

滕飞谈到,在进行温室气体排放和能源消费总量控制的同时,应继续推动化石能源的价格改革。通过价格改革可以使化石燃料价格体现隐藏的外部环境成本,逐步建立起有利于清洁能源和可再生能源发展的市场环境。通过竞争性的市场鼓励企业投资于低碳技术,并激发低碳技术领域的创新与发展。

“关于2030年达到峰值,其前体条件是年GDP碳强度的下降率要大于GDP的增长率, 年左右GDP回落到5%左右。如果中国经济增长低于预期,则实现年份有可能提前。但是大多数人认为中国经济还需要快速增长一段时间,很大程度取决于经济发展前景。” 滕飞补充道。

Monday, August 13, 2018

ग्राउंड रिपोर्ट: बरेली के इस गांव से क्यों पलायन कर गए मुसलमान?

बरेली शहर से क़रीब तीस किलोमीटर दूर आंवला क़स्बे के पास खैलम गांव के ज़्यादातर मुस्लिम परिवार पिछले दो हफ़्ते से अजीब सी दहशत में हैं. इनके गांव से निकलने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान किसी तरह का विवाद न हो, इसलिए पुलिस ने इन्हें चेतावनी दे रखी थी और सैकड़ों लोगों को रेड कार्ड जारी किए गए थे.
हालांकि ये रेड कार्ड ऐसे सभी संदिग्धों को जारी किए गए थे जिनसे पुलिस और प्रशासन को माहौल बिगाड़ने की आशंका थी लेकिन इसके डर से पलायन करने वाले परिवारों में मुसलमान ज़्यादा हैं.
गांव में ज़्यादातर मुस्लिम परिवारों के घरों पर पिछले कई दिनों से ताले लटक रहे हैं और जिनके घरों पर ताले नहीं भी हैं, वहां केवल कुछेक महिलाएं ही हैं, बाकी लोग कहीं दूर अपने रिश्तेदारों के घर चले गए हैं.
दरअसल, पिछले साल कांवड़ यात्रा के दौरान शिवरात्रि के दिन इस गांव में दोनों समुदायों के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. उसी को देखते हुए इस साल प्रशासन पहले से ही सचेत हो गया और लोगों को चेतावनी जारी कर दी गई.बरेली के पुलिस अधीक्षक ग्रामीण डॉक्टर सतीश कुमार बताते हैं, "पिछले साल कांवड़ यात्रा के दौरान दोनों पक्षों में हिंसक झड़पें हुई थीं. दोनों समुदायों के कई लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई गई थी. इस बार भी वैसी कोई घटना न घटने पाए इसलिए लोगों को रेड कार्ड जारी किए गए थे. हालांकि हमारे संज्ञान में ये बात नहीं आई कि लोग इस वजह से घर छोड़कर गए हैं."
सतीश कुमार का कहना है कि बाक़ायदा ये संदेश गांव वालों को दे दिया गया था कि किसी को डरने की ज़रूरत नहीं है, उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाएगी. लेकिन गांव वालों का कहना है कि लोगों को डर था कि कहीं कोई विवाद होने पर उनका नाम न आ जाए, इसलिए वो ख़ुद ही चले गए.
खैलम गांव की ही रहने वाली समीना के चार बेटे और एक बेटी हैं. वो बताती हैं, "हमारा एक बेटा फ़ौज में है, वो बाहर रहता है ड्यूटी पर. बाकी सभी बेटे और बहुएं अपने बच्चों को लेकर गांव से बाहर रिश्तेदारी में चले गए. पुलिस वालों ने ऐसा डरा दिया कि पता नहीं किसके ख़िलाफ़ केस बना दें. ऐसे में भलाई इसी में समझी गई कि जब तक कांवड़िए न चले जाएं, गांव से बाहर ही रहो."
समीना बताती हैं कि घर में एक भैंस पली है, उसे चारा-पानी देने की वजह से वो कहीं नहीं गईं. वहीं गांव की अन्य महिलाओं का भी कहना था कि ज़्यादातर घरों में सिर्फ़ घर की रखवाली या फिर पशुओं की देख-रेख के लिए बुज़ुर्ग महिलाएं ही थीं, बाकी लड़के-लड़कियां और पुरुष गांव से बाहर चले गए थे.
समीना जैसी कहानी खैलम गांव के तमाम मुस्लिम परिवारों की है. क़रीब चार हज़ार की आबादी वाले इस गांव साठ प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है. बताया गया कि कुछ हिन्दू परिवारों के लोग भी घरों पर ताला लगाकर गए हैं लेकिन हिन्दू आबादी में ऐसा कोई नहीं मिला.
गांव के ही आज़म हमें उन घरों को दिखाते हैं जहां शुक्रवार को भी ताले लटक रहे थे. हालांकि मुख्य कांवड़ यात्रा गुरुवार को ही थी और लोग पास के एक मशहूर शिव मंदिर में शिवरात्रि के दिन जल चढ़ाने जाते हैं. गुरुवार को भारी मात्रा में पुलिस और पीएसी के जवान यात्रा मार्ग पर तैनात किए गए थे. एसपी ग्रामीण सतीश कुमार कहते हैं कि इतनी सतर्कता की वजह से ही यात्रा सकुशल और शांतिपूर्ण रही और लोगों ने भी साथ दिया.
मुख्य सड़क से गांव के भीतर दाख़िल होने पर गांव का मुख्य बाज़़ार पड़ता है. बाज़ार में दोपहर का वक़्त होने के नाते सन्नाटा छाया था लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक बाज़ार पिछले एक हफ़्ते से बंद है. तमाम दुकानों पर अभी भी ताले लगे हुए हैं.
एक मेडिकल स्टोर चलाने वाले अजमत ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने शुक्रवार को नौ दिन बाद अपनी दुकान खोली है. उनका कहना था, "पिछले साल मेरी दुकान में तोड़-फ़ोड़ करके काफ़ी नुक़सान पहुंचाया गया था, इसलिए मैंने कांवड़ यात्रा से पहले ही दुकान बंद कर दी और यहां से बाहर चला गया."
मुस्लिम समाज के लोगों की मानें तो गांव के लगभग 150 परिवार पुलिस की कार्रवाई की खौफ से घरों में ताला डालकर चले गए हैं. उनका कहना है कि उन्हें डर है कि अगर कावंड़ यात्रा में कोई हंगामा या बवाल होता है तो निर्दोष लोगों पर भी कार्रवाई की जाएगी. अगर वे गांव में नहीं रहेंगे तो फिर उनका नाम नहीं आएगा.
ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन के साथ-साथ उन्हें कुछ कांवड़ियों का भी डर था, जिसकी वजह से कई लोग गांव छोड़कर चले गए. हालांकि शुक्रवार से लोगों का लौटना भी शुरू हो गया और कई लोग लौटते हुए दिखे भी.
वहीं गांव के दूसरे छोर पर मंदिर के पास कांवड़ लेकर जल चढ़ा चुके कुछ लोगों का कहना था कि पिछले साल मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ही उन पर पत्थर फेंके थे, इसीलिए दोनों पक्षों में विवाद हुआ था.
दरअसल गांव के कांवड़िए गंगाजल लेकर जिस गौरीशंकर गुलरिया मंदिर में चढ़ाने जाते हैं, उसकी दूरी यहां से क़रीब पांच किलोमीटर है और वहां जाने के दो रास्ते हैं. एक रास्ता गांव के बाहर की ओर से जाता है और एक गांव के भीतर से होकर.
पिछले साल से पहले तक बाहर वाले रास्ते से ही कांवड़ यात्रा निकलती थी लेकिन पिछले साल पहली बार इस रास्ते से कांवड़िए गए और माहौल ख़राब हुआ.
माहौल ख़राब करने के लिए हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं लेकिन पुलिस का कहना है कि ग़लती दोनों समुदाय के लोगों की थी, इसीलिए पिछले साल दोनों समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई और कई लोगों को ज़िला बदर भी किया गया है.
यहां दिलचस्प बात ये है कि हिन्दू और मुस्लिम सदियों से साथ रहते आए हैं और गांव वालों की मानें तो दोनों के बीच कभी ऐसा विवाद नहीं हुआ. गांव के बीरेंद्र कुमार कहते हैं, "साल भर सब मेल-जोल से रहते हैं, सावन में ही पिछले साल ऐसा हो गया. सावन के बाद फिर माहौल ठीक हो गया था लेकिन इस बार भी सावन के महीने में माहौल ख़राब होने की आशंका थी. पुलिसवालों ने ठीक ही किया कि चेतावनी दे दी थी. नहीं तो गेहूं के साथ घुन भी पिसता."
गांव में फ़िलहाल शांति है लेकिन, एहतियात के तौर पर पुलिस और पीएसी के कुछ जवान अभी भी तैनात किए गए हैं. एसपी ग्रामीण के मुताबिक जो रेड कार्ड और मुचलका लोगों से भरवाए गए थे वो एक वैधानिक कार्रवाई होती है और एक निश्चित अवधि के बाद उसका महत्व ख़़ुद ही ख़त्म हो जाता है.
कांवड़ यात्रा को लेकर इस साल भी कई तरह के विवाद सामने आ रहे हैं और पहले भी आते रहे हैं. रास्तों के जाम होने और ट्रैफ़िक समस्या तो सामने आती ही है कई जगह कांवड़ियों की स्थानीय लोगों से झड़पें भी होती हैं.
गत सात अगस्त को बुलंदशहर में पुलिस की जीप को नुकसान पहुंचाते कांवड़ियों का वीडियो वायरल हुआ था तो वहीं, मेरठ में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कांवड़ियों पर फूल बरसाना भी काफ़ी चर्चा में रहा.