Friday, November 22, 2019

कितना महंगा होने जा रहा है मोबाइल इंटरनेट और क्यों

भारत ऐसा देश है जहां पर मोबाइल डेटा की दरें दुनिया में सबसे कम हैं. यहां पर चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से भी सस्ता मोबाइल डेटा मिलता है.
लेकिन आने वाले समय में भारतीय ग्राहकों को इसी डेटा के लिए ज़्यादा रकम चुकानी पड़ सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि दो प्रमुख टेलिकॉम कंपनियों ने जल्द ही मोबाइल डेटा का दाम बढ़ाने की घोषणा की है.
भारतीय बाज़ार में एयरटेल और वोडाफ़ोन-आइडिया की राजस्व के मामले में आधे से ज़्यादा हिस्सेदारी है. ये दोनों ही कंपनियां जल्द ही मोबाइट डेटा को महंगा करने वाली हैं.
हाल ही में दोनों कंपनियों ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 10 अरब डॉलर का घाटा दिखाया है. ऊपर से सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने मामले को निपटाते हुए हाल ही में आदेश दिया है कि सभी टेलिकॉम कंपनियों को 90,000 करोड़ रुपए की रकम सरकार को देनी होगी.
इसी के बाद वोडाफ़ोन ने हाल ही में बयान जारी
कंपनियां क्यों डेटा का दाम बढ़ा रही हैं, किस हद तक यह क़ीमत बढ़ेगी और आम आदमी पर इसका कितना फ़र्क पड़ेगा? इन्हीं सवालों के जवाब के लिए बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर ने बात की टेलिकॉम और कॉरपोरेट मामलों के विशेषज्ञ आशुतोष सिन्हा से. आगे पढ़ें, क्या है उनकी राय:

क्यों बढ़ेंगे दाम

पहले टेलिकॉम सेक्टर में कई कंपनियां थीं और उनमें प्रतियोगिता के कारण डेटा की क़ीमतें गिरी थीं. ये क़ीमतें इसलिए भी गिरी थीं क्योंकि दुनिया के दूसरे देशों की तुलना
एकदम बहुत बढ़ोतरी बड़ी नहीं होगी क्योंकि कंपनियां एकदम से 15-20 प्रतिशत दाम नहीं बढ़ा सकतीं. इसलिए हर कंपनी अपने हिसाब से योजना बनाएगी कि और देखेगी कि किस सेगमेंट से कितना राजस्व बढ़ना है.
दरअसल कंपनियां 'एवरेज रेवेन्यू पर यूज़र' यानी प्रति व्यक्ति होने वाली कमाई को देखती है. अभी भारत में यह हर महीने लगभग 150 रुपए से कुछ कम है. आम भाषा में ऐसे समझें कि एक आम व्यक्ति हर महीने 150 रुपए ख़र्च कर रहा है.
तो कंपनियां ऐसी योजना ला सकती है कि अभी आप महीने में 100 रुपए का प्लान ले रहे हैं तो 120 रुपए का प्लान लीजिए, हम आपको 100 रुपए वाले प्लान से दोगुना डेटा देंगे.
इससे कंपनियां की 20 फ़ीसदी कमाई तो बढ़ जाएगी लेकिन उनका डेटा का ख़र्च उतना नहीं बढ़ेगी कि परेशानी होने लगे.
फिर भी, कंपनियां को अगर राजस्व बढ़ाना है तो ऐसा तभी हो सकता है जब वे मोटा ख़र्च करने वाले ग्राहकों से और पैसा ख़र्च करवाएंगी.
में भारत में ग्राहकों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही थी.
भारत में 22 टेलिकॉम सर्कल  और उनमें तीन कैटिगरीज़ हैं- A, B और C. इनमें C कैहैंटिगरी के सर्कल्स (जैसे कि ओडिशा) में जियो, एयरटेल व दूसरी कंपनियां नए ग्राहक बनाना चाहती थीं. ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां के ग्राहक हर महीने डेटा पर बेशक कम रकम ख़र्च करते हैं लेकिन इनकी संख्या इतनी है कि आपकी कुल कमाई अच्छी हो जाती है.
इसी कारण वे कुछ समय के लिए नुक़सान सहकर भी ग्राहकों को आकर्षित करना चाह रही थी. वह दौर अब ख़त्म हो गया है. साथ ही कंपनियां भी कम बची हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि डेटा की क़ीमत बढ़ेगी.
एयरटेल की ओर से भी इसी तरह का बयान जारी किया गया है. नई दरें क्या होंगी, इस बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई है. जियो ने भी अभी तक ऐसी कोई घोषणा नहीं की है.
किया है, "मोबाइल डेटा आधारित सेवाओं की तेज़ी से बढ़ती मांग के बावजूद भारत में मोबाइल डेटा के दाम दुनिया में सबसे कम हैं. वोडाफ़ोन आइडिया 1 दिसंबर 2019 से अपने टैरिफ़ की दरें उपयुक्त ढंग से बढ़ाएगा ताकि इसके ग्राहक विश्वस्तरीय डिजिटल अनुभव लेते रहें."

Tuesday, September 17, 2019

आईफ़ोन 11 का ट्रिपल कैमरा कुछ लोगों को डरा रहा है?

एप्पल अपने प्रोडक्ट के डिज़ाइन के लिए जाना जाता है. हाल ही में लॉन्च हुआ नया आईफ़ोन 11 भी का डिज़ाइन और लुक काफ़ी आकर्षक लग रहा है.
लेकिन कुछ लोगों को आईफ़ोन 11 में लगे ट्रिपल कैमरा का डिज़ाइन थोड़ा खटक रहा है. इसमें ट्राइपोफोबिया नामक बीमारी से ग्रसित लोग अधिक हैं.
दरअसल ट्राइपोफोबिया एक तरह का डर होता है, जिसमें छोटे छिद्रों या आयातों से बने जियोमैट्रिक पैटर्न किसी शख़्स को परेशान करते हैं.
यही वजह है कि आईफ़ोन 11 के ट्रिपल कैमरा का डिज़ाइन कुछ लोगों को परेशान कर सकता है.
ट्राइपोफोबिया से होने वाले डर और परेशानी का सबसे उदाहरण कमल के फूल में दिखने वाले बीच हैं, उसमें छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जो एक ख़ास पैटर्न से लगे होते हैं. छिद्रों का यह पैटर्न ट्राइपोफिबिया से पीड़ित इंसान को परेशान करने लगता है.
प्रोफेसर अर्नोल्ड विल्किंस और डॉक्टर जिओफ़ कोल एसेक्स यूनिवर्सिटी में शोधार्थी हैं. इनका मानना है कि किसी ख़ास पैटर्न से नफ़रत करना या उससे डरना एक तरह से हमारे शरीर की रक्षात्मक प्रतिक्रिया होती है.
इसे समझाने के लिए यह दोनों शोधार्थी बताते हैं कि कई लोगों को मकड़ी, सांप या बिच्छू से डर लगता है. इन जानवरों के शरीर पर भी इसी तरह के पैटर्न बने होते हैं.
इसी डर की वजह से इन लोगों को इस पैटर्न में दिखने वाली अन्य चीज़ों या आकृतियों से भी डर लगने लगता है.
हालांकि इस तरह के डर को चिकित्सकीय तरीके से पहचाना नहीं जा सकता, इसे पैटर्न फ़ोबिया भी कहते हैं.
वैसे इस बार लॉन्च हुए आईफ़ोन 11, आईफ़ोन 11 प्रो और आईफ़ोन 11 प्रो मैक्स की सबसे ख़ास बात उसका ट्रिपल कैमरा ही है. इन कैमरों की मदद से एक ही वक़्त में मल्टीपल वीडियो रिकॉर्ड किए जा सकते हैं.
आईफ़ोन 11 के प्रो मॉडल में टेलीफोटो, वाइड और अल्ट्रा वाइड कैमरे भी हैं. इसके साथ ही इनमें नाइट मोड के लिए अलग से ऑप्शन है, जिसकी मदद से कम रोशनी में भी अच्छी तस्वीरें खीचीं जा सकती हैं.
लेकिन आईफ़ोन 11 के ये तमाम दिलचस्प पहलू उन लोगों के लिए किसी बुरे सपने की तरह हैं जिन्हें छिद्रों के पैटर्न से डर लगता है, जिन्हें ट्राइपोफोबिया है.
इन लोगों को ये पैटर्न देखकर उल्टी जैसा महसूस होने लगता है, उनकी हृदयगति बढ़ जाती है और चक्कर आने लगते हैं.
यही वजह है कि कुछ लोगों ने आईफ़ोन 11 ना ख़रीदने का फ़ैसला किया है.
ऐसे ही कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर इस संबंध में अपने विचार भी साझा किए हैं.
इन लोगों ने बताया है कि जब वो नए आईफ़ोन के बैक पर लगे कैमरों को देखते हैं तो उन्हें कैसा महसूस होता है.
अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में रहने वाली एक छात्रा बताया कि आईफोन के पुराने मॉडल्स से उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं हुआ लेकिन आईफ़ोन 11 का मॉडल उन्हें डरावना लगता है.
इसी तरह एक महिला ने आईफ़ोन 11 प्रो के कैमरों की तस्वीर ट्विटर पर पोस्ट करते हुए लिखा कि क्या ये बुरा लगता है.
आईफ़ोन 8 या आईफ़ोन XR में सिंगल रियर कैमरा है, उसमें कुछ अलग तरह का पैटर्न नहीं है.
जबकि आईफ़ोन 11 के प्रो और मैक्स वर्जन में तीन कैमरे एक ख़ास पैटर्न में सेट किए गए हैं, जिसकी वजह से ट्राइपोफोबिया से ग्रसित लोगों को परेशानी महसूस हो रही है.
आईफोन के डिज़ाइनरों ने जब ट्रिपल कैमरा को डिज़ाइन किया तो उन्होंने इस दुर्लभ स्थिति के बारे में शायद नहीं सोचा.
आईफ़ोन 11 के ट्रिपल कैमरा पैटर्न को देखने के बाद बहुत से लोगों ने ट्राइपोफोबिया के बारे में लिखना शुरू किया है. कुछ लोगों ने मज़ाकिया अंदाज़ में आईफ़ोन 15 की तस्वीर की कल्पना की है.
यह तस्वीर ट्राइपोफोबिया से ग्रसित लोगों को और ज़्यादा डरावनी लग सकती है.
डॉक्टर जिओफ़ कोल कहते हैं, ''हम सभी किसी न किसी स्तर पर ट्राइपोफोबिया का शिकार होते हैं. हमारा डर इस बात पर निर्भर करता है कि हम उसे कितना सहन कर पाते हैं.''
अमरीका में हॉरर कहानियों की एक सिरीज़ की अभिनेत्री सारा पॉलसन और मॉडल केंडल जेनर भी उन लोगों में शामिल हैं जिन्हें ट्राइपोफोबिया है.

Friday, August 23, 2019

هل مكملات "أوميغا 3" الغذائية مفيدة حقا لمرضى السكري؟

ولكن سندس تضيف بأن ثمة تقدم في المجالات غير السياسية. وتقول "لدينا نساء في مراكز مرموقة في مجال الأعمال، كما لدينا عميدات جامعات. والكثيرات منهن يرأسن شركات خاصة كما تعمل الكثيرات في مؤسسات الدولة".
وتضيف أنه من الممكن أن يكون هذا التقدم أسرع لو سمح للنساء بقدر أكبر من المرونة في ساعات العمل وفي العمل الجزئي غير المتفرغ، إذ أن العاملات الآن واللواتي لديهن أسر يعانين من موقف صعب.
وتقول "ما زال كثير من الرجال يعتقدون بأن على النساء البقاء في الدار والعناية بأسرهن بدل الخروج للعمل".
وعبرت النساء المشاركات في الاستطلاع عن آراء أقل حيادية في القضايا التي لا تخص السياسة.
ففي الوقت الذي أيد فيه 43 في المئة من الرجال حق المساواة في الطلاق، أيدته 87 من النساء.
وبينما أيد 83 في المئة من الرجال الرأي القائل إن القول الفصل في الأسرة يجب أن يكون للرجل، لم تؤيده سوى 43 في المئة من النساء.
كان التعليم أحد المجالات القليلة التي اتفق فيها الجنسان. فقد كشف الاستطلاع عن أن 16 في المئة فقط من الكويتيين عامةً يعتقدون بأن التعليم الجامعي أكثر أهمية للرجال مما هو للنساء، وأن 20 في المئة فقط من الرجال يوافقون على ذلك.
فالمرأة الحاصلة على تعليم جامعي لا تعتبر مسألة مهمة بالنسبة للرجل الكويتي. ويبدو أن المشكلة تكمن في امكانية أن يتحول فيه التعليم إلى سلطة أو قدرة على اتخاذ القرارات بشكل مستقل.
من الأمور التي تلفت الاهتمام أن من بين الأسئلة التي منعت الحكومة الكويتية المستطلعين من توجيهها سؤالا يتعلق بالتحرش الجنسي والعنف الأسري.
وتسمح المادة 153 من قانون الجزاء الكويتي 16 لعام 1960 للرجل بقتل أي من قريباته النسوة اللواتي يضبطن في موقف جنسي فاضح دون أن يدفع إلا غرامة صغيرة.
وتقول إن المجتمع الكويتي يتقبل جرائم غسل العار التي تتركز في المناطق التي تسكنها نسب عالية من البدو.
وتضيف "لا يبدو أننا نحقق أي تقدم في المجتمع البدوي". ولحد الآن، نجح النواب البدو في مجلس الأمة في التأثير على زملائهم لمنع إلغاء المادة 153.
من الواضح أن الكويت أصبحت مفارقة في ما يخص تمكين المرأة سياسيا في العقد الأخير.
فالكويت بلد ثري، أنفق أموالاً طائلة على المشاريع الثقافية، فقد أنشأ أكبر دار للأوبرا في المنطقة على سبيل المثال.
ولكن هذا التقدم المادي لا يبدو أنه يسهم في تقدم قضايا النساء.
فبينما بيّن تقرير المنتدى الاقتصادي العالمي لعام 2018 أن الكويت قد حققت تقدما في ردم الهوة بين الجنسين في مجالات العمل المهني والتقني، لم تواكب الحقوق السياسية هذا التقدم. فقد توصل المنتدى ذاته إلى أن الكويت تعد من أسوأ أربع دول في العالم في مجال التمكين السياسي للمرأة.
من ناحية أخرى، تمكنت الكويت من الحصول على سمعة جيدة في ما يخص تنشئة جيل من النسوة الرائدات والمقتدرات، من أمثال خبيرة الاقتصاد رولا دشتي.
شاركت رولا دشتي في تنظيم الاحتجاجات التي أفضت في نهاية المطاف على حصول النساء على حق التصويت.
وكانت احدى النساء الأربع اللواتي انتخبن نائبات في مجلس الأمة في عام 2009، وعينت وزيرة في الحكومة وهو منصب احتفظت به من عام 2012 إلى عام 2014. وعينت هذا العام مديرة لمفوضية الأمم المتحدة الاقتصادية والاجتماعية لغرب آسيا.
تقول سندس حسين "مما لا شك فيه أن الكويت أفضل بالنسبة لمعيشة المرأة من السعودية"، مشيرة إلى أن بعضا من السعوديات اللواتي شاركن في الاحتجاجات من أجل حق قيادة السيارات ما زلن يقبعن في السجون رغم صدور قانون في العام الماضي يسمح للمرأة بقيادة السيارة.
وتقول إن النساء في الكويت يتمتعن بحريات أكثر بكثير من الدول الخليجية الأخرى في ادارة أمورهن دون تدخل من جانب الرجال. ولكنها تضيف أن نظرة إلى المنطقة العربية ككل تكشف عن أن الكويت ما زالت تتخلف عن دول كثيرة أخرى كتونس ومصر ولبنان في هذا المضمار.
وكان أحد أكثر الأسئلة كشفا للواقع في الاستطلاع يدور حول ما اذا كان يحق للمرأة أن تسافر إلى خارج الكويت بمفردها. فبينما أيدت هذا الحق 59 في المئة من النسوة المشاركات، لم يؤيده إلا ربع الرجال.
تقول سندس حسين في هذا الصدد "لا يسمح لي كأم أن استخرج جواز سفر لابنتي أو أبنائي، فذلك من حق والدهم فقط، لذا فليس مستغربا أن يعتقد الرجال بأنه لا ينبغي السماح للنساء بالسفر بمفردهن. وما لم يزدد تمثيل المرأة في مجلس الأمة، لن تتغير هذه القوانين".
ومن الجدير ذكره أن الحكومة الكويتية رفضت أن يوجه الاستطلاع عدد من الأسئلة على المشاركين، ومنها أسئلة تتعلق بالتحرش الجنسي والدين والتغيير السياسي والصحة العقلية والعنف.

Friday, July 5, 2019

#INDvBAN मैच के दौरान विराट-रोहित को आशीर्वाद देने वाली महिला कौन?

क्रिकेट वर्ल्ड कप 2019 का एक बेहद अहम मुक़ाबला मंगलवार को बर्मिंघम के एजबेस्टन में भारत और बांग्लादेश के बीच खेला गया. टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी करने उतरी भारतीय टीम ने नौ विकट खोकर 314 रन बनाए और बांग्लादेश को 28 रनों से हराकर सेमीफ़ाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली.
शतक बनाने वाले रोहित शर्मा मैन ऑफ़ द मैच चुने गये लेकिन मैच के दौरान और मैच के बाद जिस एक चेहरे ने सबसे अधिक सुर्खियां बटोरीं वो कोई क्रिकेटर नहीं हैं.
ये थी 87 साल की चारुलता. इन्हें सोशल मीडिया पर 'फ़ैन ऑफ़ द टूर्नामेंट' तक कहा जाने लगा है.
दर्शक दीर्घा में बैठकर जिस तरह चारुलता पटेल टीम इंडिया को चीयर कर रही थीं, वो देखते ही बन रहा था. मैच के दौरान उनके जोश को कैमरे ने कई बार कैद किया. कमेंटेटर सौरव गांगुली और हर्षा भोगले ने भी उनकी चर्चा की.
व्हील चेयर पर आई चारुलता ने दोनों खिलाड़ियों को जीत की बधाई दी और आशीर्वाद भी. आईसीसी ने चारुलता के साथ एक छोटा सा इंटरव्यू भी किया.
"हम अपने सभी प्रशंसकों के प्यार और साथ के लिए उन्हें धन्यवाद कहना चाहेंगे, ख़ासतौर पर चारुलता पटेल जी को. वो 87 साल की हैं और मैंने अभी तक जितने लोगों को देखा है वो उनमें संभवत: सबसे अधिक समर्पित प्रशंसक हैं. उम्र तो सिर्फ़ एक संख्या है, आपका जोश और जुनून आपको कहीं भी ले जा सकता है. उनके आशीर्वाद के साथ अगले लक्ष्य की ओर..."
चारुलता ने मैच ख़त्म होने के बाद दिए इंटरव्यू में बताया कि उनका जन्म भारत में नहीं बल्कि तंजानिया में हुआ है. अपने क्रिकेट के शौक और जुनून के बारे में उन्होंने कहा कि उनके बच्चे काउंटी क्रिकेट खेलते हैं और उन्हें देख-देखकर ही वो इस खेल की प्रशंसक बन गईं. उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता भारत से हैं और इसीलिए वो इस मैच में भारत को चीयर करने आईं.
चारुलता ने कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि भारत इस बार विश्व कप जीतेगा. एनआई को दिए एक इंटरव्यू में चारुलता ने कहा कि वो भगवान गणेश से भारत की जीत के लिए प्रार्थना करेंगी.
उन्होंने बताया कि जब भारत पहली बार साल 1983 में क्रिकेट विश्व विजेता बना था तो उस वक़्त भी वो इंग्लैंड में ही थीं.
चारुलता ने बताया कि क्रिकेट उन्हें बहुत पसंद है लेकिन जब वो नौकरीपेशा थीं तो सिर्फ़ टीवी पर ही मैच देखती थीं लेकिन रिटायर होने के बाद वो जब भी मौक़ा मिलता है मैच देखने स्टेडियम आती हैं.
पत्रकार मज़हर अरशद ने भी चारुलता को लेकर ट्वीट किया.
उन्होंने लिखा "चारुलता का जन्म पहले विश्व कप से 43 साल पहले हुआ था और उन्होंने क्रिकेटर्स की कई पीढ़ियों को देखा है लेकिन उनका मानना है कि विराट कोहली सबसे अच्छे हैं. फ़ैन ऑफ़ द टूर्नामेंट."
इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने टेलीविज़न के एक शॉट (विराट कोहली चारुलता को नमस्कार कर रहे हैं) का ज़िक्र करते हुए लिखा "द पिक्चर ऑफ़ द वर्ल्ड कप".
कुछ ऐसा ही वाकया 2019 के आईपीएल के दौरान भी देखने को मिला था जब एक बुजुर्ग महिला धोनी से मिलने पहुंची थीं.

Monday, June 10, 2019

الوردة الشامية: سوريّات يقطفن محصول البلاد "الأغلى من الذهب"

بعين خبيرة ويد لا تُخطئ، تتفحّص "عربيّة عبده" شجيرات الورد الصغيرة، وتعرف تماماً أيّ الورود حان قطافها، وأيّها تحتاج يوماً أو يومين. "من يوم الله خلقنا ونحنا عايشين بحقول الورد"، تقول المرأة السبعينية مبتسمة وتمدّ يدها نحوي بوردة كبيرة، مضيفة: "هذه رائحة الورد الطبيعي. لن تجدي له مثيلاً إلا هنا".
بجوارها، كانت زوجة ابنها "سريا عباس" تقطف الورود بطريقة لا تقل مهارة وخفة عن حماتها. وإلى جانبها يلعب ابنها الصغير الذي لم يتجاوز عمره بضعة أعوام.
"يقع العبء الأكبر لكل ما يتعلق بالوردة الشامية على عاتق النساء اللواتي يهيئن الأرض وقت الزراعة ويقطفن الورد ثم يحضّرن المنتجات بعد القطاف. لولا نساء قرية المراح لما استمرت هذه الوردة"، بحسب سريا التي يرتفع صوتها ممازحة من حولها. وتدور بعض النقاشات باللغة التركية التي يستخدمها أهالي القرية في تواصلهم اليومي بين بعضهم البعض، في حين يتحدثون للقادمين من أماكن أخرى بالعامية السورية.
لقطاف الوردة الشامية موسم محدد يمتد بين 15 مايو/ أيار و10 يونيو/ حزيران، ومكان أصبح معروفا: قرية المراح.
هذه القرية، الواقعة في جبال القلمون قرب دمشق على ارتفاع 1500 متر، تعتبر من أهم مناطق إنتاج الوردة الشامية التي أغرت تجاراً كثيرين لشرائها وتصديرها منذ زمن بعيد.
يوميا في هذه الفترة من السنة، بين الخامسة والثامنة صباحاً، تتحول مئات الدونمات المحيطة بالقرية الصغيرة إلى ما يشبه المهرجان؛ إذ تتمايل النساء بحركات منتظمة ليقطفن برقّة وعناية الورود ذات اللون الزهري المتداخل مع الأبيض ويضعنها في سلال ودلاء صغيرة أو جيوب قماشية معلقة على الخصر، ويعمل بعض الأطفال والرجال إلى جانبهنّ، وتنتشر في كامل المنطقة رائحة أخّاذة يفخر المزارعون بها كلما كانت فوّاحة أكثر، فهي تدل على جودة المحصول وحسن الاعتناء به.
تشرح لي عربيّة أن الورود الصغيرة التي لم تتفتح بعد، والتي تُعرف باسم "الأزرار"، هي الأفضل للتجفيف والاستخدام كأعشاب تُغلى، فلها خواص مقاومة للبرد والمرض، بينما يمكن استخلاص ماء الورد وزيته من الورود الأكبر، كما أنها قد تحوّل إلى مربى أو شراب الورد. "لكل وردة الوقت الأنسب لقطافها، وأحياناً يكون الفرق ساعات أو أياماً بين واحدة وأخرى".
تعلّق سريا، زوجة ابنها الثلاثينية، بالقول: "كما كل نساء القرية، نتعلّم القطاف منذ الصغر. وبقدر ما أحب هذا الأمر، بقدر ما هي مؤلمة أشواك الورود التي تمتلئ بها أيدينا كل يوم". وهنا تضحك عربية لأن "نساء الجيل الأصغر أقل خشونة وقدرة على تحمل مشاق الحياة الريفية".
لدى سريا حكاية أخرى، فهي طالبة جامعية حرمتها الحرب من متابعة تعليمها في دمشق، وزادت صعوبة التنقل من المشاكل التي واجهتها؛ فتلك المنطقة عاشت بعض فصول المعارك خلال السنوات الماضية. وهي أيضاً معلّمة للغة الإنجليزية في إحدى مدارس القرية.
عانت الوردة الشامية من تبعات الحرب السورية خلال السنوات الماضية؛ حيث أُجبر الفلاحون على التخلي لبضع سنوات عن أراضيهم نتيجة العمليات العسكرية التي شهدتها منطقة القلمون، وانخفضت مساحة الأراضي المزروعة بالورد من 2000 دونم إلى قرابة الألف، كما أثّر الطقس الجاف لسنوات متتالية على محصول الوردة وجودته.
يقول منصور عباس، وهو مهندس زراعي وعضو مجلس رابطة الفلاحين بالمراح، إن: "الخوف هو فعلاً ما شعرنا به خلال أيام الحرب. الخوف على وردتنا، وهي أثمن ما نملك".
وضاعف ارتفاع أسعار المحروقات اللازمة للحراثة ونقص اليد العاملة، خاصة الخبيرة، نتيجة الخسائر البشرية والاقتصادية الكبيرة التي ألمّت بالبلاد من تكاليف إنتاج الوردة، ودفع البعض لإهمالها.
ويشير منصور إلى دعم وزارة الزراعة في ما يخص المياه والمحروقات، والذي يساعد المزراعين على إعادة تأهيل الأراضي التي خرجت عن الخدمة.
"نهدف للوصول لأكثر من ألفي دونم من جديد"، يقول الرجل الأربعيني وهو يقطف الورود من حقله الصغير قبل أن يتوجه إلى وظيفته، وإلى جانبه تلعب ابنته الصغيرة "ورد الشام" التي سُميت بهذا الاسم تيمناً بوردة المراح لولادتها في شهر يونيو، موسم القطاف.
تسرد أم برهان، وهي من نساء المراح، تلك الصعوبات بطريقتها، حيث تتحدث عن ازدياد أعباء النساء بشكل خاص مع سفر ووفاة الرجال والشباب، وتقول بحزن: "الزراعة للرجال والقطاف وما بعده هو من مهام النساء المعروفات بصبرهنّ، لكن الحرب غيّرت كل شيء".
ومع سفر زوجها وابنيها وبقاء ابن واحد فقط في دمشق بغرض الدراسة، تحوّلت أم برهان لمشرفة على زراعة أرض العائلة والاعتناء بمحصول الوردة الشامية، وباتت مضطرة للاستعانة بعمال لتنفيذ بعض المهام الشاقة كالحراثة والتي كانت عادة من نصيب الذكور. وتقول "كل شيء اليوم أصبح صعباً ومكلفاً".
إلى جانب ذلك، تجد الوردة الشامية صعوبات في التسويق والبيع، فنقل الورود إلى الأسواق الداخلية والخارجية، والاعتماد على التجار الذين كانوا يحضرون إلى سوريا لشراء كميات كبيرة وتصديرها بغرض استخراج الماء والزيت العطري منها لم يعد سهلاً كما كان قبل الحرب.
لا تنتهي حكاية الوردة الشامية عند قطافها، بل إن المهام الحقيقية تبدأ بعد هذا، كما تقول إيمان عباس، وهي من أهالي المراح.
بعد تجميع الورود الصغيرة التي لم تتفتح بعد، أو "الأزرار"، تعمل إيمان مع والدتها وأختيها على تجفيفها، وذلك بنشرها في الهواء الطلق بشكل معين يضمن وصول أشعة الشمس لكل منها، ومراقبتها للتأكد من عدم تعرضها للحشرات الضارة، ومن ثم إعادة جمعها في التوقيت المناسب.
تشير الفتاة العشرينية إلى أن كل ثلاثة كيلوغرامات ونصف من الورود تُنتج كيلوغراماً من الورد اليابس الذي يُباع في الأسواق، خاصة سوق البزورية القديم في دمشق، ويُسمى "الزهورات".
كما تصنع نساء القرية من الورود الشراب والمربى والتوابل بوصفات ومقادير خاصة يبرعن بها.
وفي منزل آخر غير بعيد، يستخرج أبو قصي ماء الورد من الوردة الشامية باستخدام جهاز يدعى "الكركة"، حيث يحتاج إلى كيلوغرام واحد لتقطير لتر من الماء المركّز الذي يستخدم كمستحضر طبّي ذي خواص مفيدة للبشرة، وأيضاً في صناعة بعض أنواع الحلويات الشرقية التي تشتهر بها سوريا وغيرها من بلدان المنطقة.
وتحتوي القرية على عدد محدود من أجهزة "الكرك" التي لا تكفي لتقطير كامل محصول الورد. ويؤدي ذلك لضياع كميات منه دون فائدة حيث تتعرض للذبول.
ويجري الرجل الستيني بمساعدة عائلته تجارب بدائية لاستخراج زيت الورد الذي يعتبر بنظر أهل القرية الثروة الأكبر والمنتج الأكثر تكلفة وأيضاً صعوبة، حيث يحتاج الكيلوغرام إلى ما لا يقل عن طن من بتلات الورد، ويمكن بيع الغرام الواحد بما يقارب 200 دولار أمريكي.
يمسك أبو قصي زجاجة زيت صغيرة، يتنشق الجميع عطرها الفواح، ويستذكرون حكايات عن تاجر يهودي كان يزور قريتهم أوائل القرن الماضي لشراء كامل محصول الوردة الشامية لتصديره إلى أوروبا بغرض استخراج الزيوت المستخدمة في صناعة العطور الفاخرة. ويأمل أبو قصي أن تتمكن كل العائلات من تقطير محصول الورد الخاص بها، وأيضاً من صناعة الزيت العطري ومن ثم تسويقه.
"قريتنا تمتلك ثروة لا تقدر بثمن، ويجب أن تكون هذه الوردة سفيرتنا نحو العالم"، كما قال لي وأنا أغادر القرية في طريقي إلى دمشق.

Wednesday, April 24, 2019

هل لقاء السيسي وحفتر مقدمة "لقوات مصرية في ليبيا"؟

ما زالت ليونورا تحب زوجها المتطرف، وتقول إنها ستنتظره اذا أعيد إلى ألمانيا وحكم عليه بالسجن.
وتطرقت في حديثها إلى وفاة إبن شميمة بيغوم الذي ولد في المخيم ومات بعد 20 يوما. أصيب طفلاها بأمراض، ولكنها تقول إنها تشعر بأنهما سيكونان بخير في نهاية المطاف.
لم يدم لقائنا الثاني طويلا، فقد كانت ليونورا ميسينغ مرتبطة بموعد مهم. وصل رتل من السيارات المدرعة يستقله غربيون يحميه مسلحون إلى المخيم. قالت ليونورا "تريد الحكومة الألمانية أن تتفقد أوضاع طفليّ".
قال وزير الخارجية البريطانية إنه من الخطورة بمكان أن يتوجه دبلوماسيون بريطانيون إلى سوريا، البلد الذي لا توجد فيه سفارة أو قنصليات (حالها حال ألمانيا). ولا توجد إلى الآن خطط لاعادة النسوة والأطفال البريطانيين الذين قتل العديد من أزواجهن أو جردوا من جنسياتهم البريطانية.
وبينما تزداد الغيوم الماطرة كثافة، توجهت نحونا شابتان بكل تصميم. رائحة المخيم تزكم الأنوف ولا يوجد صرف صحي والأمطار تزيد من الطين بلة. كانت واحدة منهما تحمل حقيبة غالية الثمن. ومن خلال النقاب الذي كانتا ترتديهما، تيقنت أنهما مجرد مراهقتين.
قالتا بنبرات تخلو من الغضب "أين أزواجنا؟ متى سيطلق سراحهم؟". وعندما هز زميلي أكتافه تعبيرا عن جهله بما كانتا تطالبان به، سألته واحدة منهما "أسأله" مشيرة إلي بكفها الذي كان مغطى بقفاز أسود، بينما سمعنا أصوات قهقهة من تحت الأردية السوداء التي كانتا ترتديانها.
قد تحصلان على اجابات لأسئلتهما في الأيام القادمة، إذ يستعد العراق لاستعادة مواطنيه. سينقل المعتقلون ذوو القيمة العالية أولا وسيواجهون الإعدام على الأرجح، وسيتبعهم أطفالهم ونسائهم. وتم إعداد مخيمات لذلك في العراق بالفعل، مخيمات لا تبعد كثيرا عن مخيم الهول ولكن على الجانب العراقي من الحدود.
قد يؤدي ذلك إلى رفع الضغط عن مخيم الهول، ولكنه لن يحل المعضلة التي يشكلها المخيم بالنسبة للدول الغربية، وهي معضلة تتلخص في السؤال: "كم من الرحمة ينبغي لك أن تبديها لعدو خال من الرحمة؟". وما سيكون مصير نساء المسلحين وأطفالهم بعد
تقول ملك البالغة من العمر 23 عاما إن والدها كان يتصل بها من العمل للتأكيد على سلامة ابنته قائلا :"لا تغادري المنزل اليوم إلا في حالة الضرورة فقط".
كان والدها يحرص على إجراء هذا الاتصال بعد حدوث هجوم فتح فيه مسلح النيران على مسجدين في نيوزيلندا خلال صلاة الجمعة في شهر مارس/آذار الماضي.
تقول ملك: "كنت جالسة في هذا اليوم الرهيب في مسكني في بيت الطالبات في نوتنغهام، أقاوم دموعي وأنا أشاهد وسائل التواصل الاجتماعي مع استمرار ارتفاع حصيلة قتلى الهجوم".
حدث ذلك في أعقاب هجوم نيوزيلندا، إذ تلقت منظمة "رصد الهجمات المعاية للمسلمين"، المعروفة باسم"تيل ماما" أي (أبلغ ماما) ، بعد أسبوع من إطلاق النار على المسجدين في مدينة كرايست تشيرتش النيوزيلندية، أضعاف عدد حالات الإبلاغ عن ارتكاب جرائم بدافع الكراهية أكثر من متوسط العدد الذي تتلقاه أسبوعيا، وفقا لأرقام صحيفة "الغارديان" البريطانية.
وهو نفس الشيء الذي حدث في أعقاب هجمات "ويستمنستر" و"لندن بريدج" في عام 2017. كما سجلت حالات الإبلاغ عن جرائم بدافع الكراهية في نفس العام في مدينة مانشستر الكبرى، بعد الهجوم الإرهابي الذي استهدف سيدات وأطفالا على وجه التحديد خلال حفل موسيقي، زيادة تجاوزت 500 في المئة، وفقا لأرقام الشرطة الرسمية، والتي تضمنت أيضا جرائم بدافع الكراهية على الإنترنت.
وعلى الرغم من تراجع عدد الحوادث المبلغ عنها منذ حدوث تلك الهجمات، يبدو أن الإسلاموفوبيا عموما تفاقمت خلال العقدين الماضيين.
ففي عام 2018 وحده، وفقا لأرقام حكومية، سجل عدد جرائم بدافع الكراهية الدينية زيادة بواقع 40 في المئة في شتى أرجاء بريطانيا، يستهدف أكثر من نصفها المسلمين.
سأكون كاذبة إن قلت إن سماع مثل هذه الإحصاءات لم يجعلني خائفة. لكني أرفض الانعزال، فبالنسبة لي كون المرء مسلما لا يعني هوية ثقافية فحسب، بل هو عدم الخوف في مواجهة الكراهية. لذا كنت أسوق لوالدي بعض الأكاذيب البيضاء، وعشت حياتي بطريقة معتادة: أحضر فصولا دراسية وأشارك في أنشطة السياسة الطلابية وأذهب لتناول القهوة مع الأصدقاء.
وخلال الأيام التالية للهجوم، نظمت أمسية لنحو 60 شخصا في نوتينغهام، وأردت أن أتيح للمسلمين مساحة نستطيع من خلالها التواصل فيما بيننا ونشاطر بعضنا ما نشعر به جميعا كناجين وحزانى على أولئك القتلى، والتعامل مع الخوف المكبوت بداخلنا من أن تكون المساجد هي الهدف التالي. وقد تكون أسرتنا، ونحن عاجزون عن وقفها.
لا يعد التعامل مع الخوف جديدا بالنسبة لي. أنا نشأت في شرقي لندن، في منطقة يسودها سكان ينتمون إلى الطبقة العاملة من الآسيويين والمسلمين. وعلى الرغم من وجود الكثير من المساجد والأغذية "الحلال" في متاجر السوبر ماركت المحلية، إلا أنني قضيت سنوات طفولتي ومراهقتي أعيش في كنف عنف مناهض للمسلمين.
بدأت مرحلة تعليمي الابتدائية عندما حدثت هجمات الحادي عشر من سبتمبر/أيلول الإرهابية. كنت أبلغ من العمر خمس سنوات، وأتذكر أنهم كانوا يطلقون عليّ أسماء في ساحة اللعب في المدرسة، وفجأة فقدت الشعور بالأمان.
بعد أربع سنوات حدث هجوم السابع من يوليو/تموز عام 2005 في لندن، مدينتي. أتذكر الشعور بصدمة والخوف من أن يحدث أي شيء كهذا بالقرب من منزلي. وبعد ذلك تغير كل شيء.
بدأ التنمر في المدرسة وتسميتي "بن لادن" أو "إرهابية"، ولم تقتصر الهجمات على الإساءة اللفظية فقط، بل أحيانا كنت أذهب إلى منطقتي وأسرتي بإصابات جسدية واضحة. وفي مناسبات قليلة، كانت الاعتداءات سيئة حقا، وينتهي الأمر بي في المستشفى.
ظل أثر تلك الأحداث بداخلي حتى يومنا هذا، وإن تعرضت إلى سوء معاملة، يكون رد فعلي الأول هو "ماذا فعلت لاستحق هذا؟ ماذا فعلت؟ لابد أن هناك خطأ"
التحقت بعد ذلك بمرحلة التعليم الثانوية، وعانيت من اضطرابات في الأكل، ومازلت أعاني من اكتئاب ومشكلات نفسية أخرى حتى اليوم.
وصل التنمر في المدرسة إلى حد كونه أصبح كالكابوس. كنت أعاني من عجزي عن تكوين أصدقاء والحفاظ على الهدوء في الفصل. كنت أخاف من أن أطرح رأيا في أي شيء.
كان كل ما كنت أرغب فيه في ذلك الوقت هو اعتباري "بريطانية" وأن أعامل مثل جميع الأطفال غير المسلمين في الفصل. قيل لي مرارا أنت "لست بريطانية"، بل "إرهابية" وأسوأ من ذلك. وكانوا يلومونني على أعمال يرتكبها متطرفون قتلة بزعم أنهم يشاركونني الدين.
كان الالتحاق بالجامعة في نوتنغهام صدمة ثقافية هائلة بالنسبة لي، على الرغم من نشأتي في حي يغلب عليه الآسيويون في شرقي لندن. كنت المسلمة الوحيدة والآسيوية الوحيدة في المحاضرة. كانت رؤية مسلمة ترتدي الحجاب مشهدا مألوفا في منطقتنا. لكني قابلت أناسا في الجامعة من مناطق ريفية لم يسبق لهم رؤية سيدات يرتدين الحجاب إلا على شاشات التلفزيون أو في الصحف.
لا أستطيع حصر كم عدد المرات التي اضطررت فيها إلى توضيح الأمر، نعم أنا ارتدي الحجاب بمحض اختياري. ولم أُجبر على ارتداء الحجاب. كنت محظوظة بعدم الاعتداء عليّ في حرم الجامعة وأنا أرتديه. أعرف فتيات خلعن حجابهن.
عندما بدأت مرحلة تعليمي الجامعية، أردت أن أبدأ صفحة جديدة في حياتي بعيدة عن التنمر والسخرية، والشعور بعدم الخوف من كوني مختلفة. وخلال سنوات ارتديت حجابي بطريقة أشبه كثيرا بالعمامة، وأشبه بطريقة تواكب موضة العصر.
كنت قلقة في البداية من كوني لا أستطيع التغلب على ذلك بعيدا عن منطقتي، وعدم الشعور بالأمان أو ظهور قضية الانتماء من جديد على السطح. وحمدا لله، استطعت تكوين شبكة قوية من الأصدقاء حاليا. وقضيت ستة أشهر أيضا أدرس في الخارج في ماليزيا، وهي تجربة ربما كنت أخشاها وأنا أصغر سنا.
أشعر اليوم بمزيد من الثقة بنفسي، وأصبح لي رأي في أنشطة السياسة الطلابية. ومازالت أعاني من مشكلات نفسية ولم يفارقني تأثير الصدمة التي عانيت منها وأنا في مثل هذا السن الصغير.
عدت مؤخرا إلى ارتداء حجابي بالطريقة التقليدية، كتلك الطريقة التي اعتدتها وأنا في سن المدرسة.
الأمر بالنسبة لي هو استعادة لرمز هويتي كمسلمة، وأنا أرتديه في هذه الأيام بفخر، حتى في وجه الكراهية.
زوال الدولة الإسلامية؟

Monday, February 18, 2019

النمر الأسود: حيوان نادر التقطته عدسة الكاميرا في كينيا

وعلى الرغم من أن هذه التهديدات حقيقية، إلا أن الخطر الأعظم الذي نواجهه في عام 2019، عندما ننظر إلى الأمر من منظور عالمي، ربما يكمن في مكان آخر.
ومع وجود ثمانية مليارات شخص يعيشون على الأرض، نعتمد بشكل متزايد على النظم الكونية لبقائنا. وتمتد هذه النظم من البيئة، التي توفر لنا الطعام والماء والهواء النقي والطاقة، وتصل إلى الاقتصاد العالمي الذي يحول هذه الموارد الطبيعية إلى سلع وخدمات.
ومع ذلك، فإن انخفاض مستويات التنوع البيولوجي وكذلك الإفراط في البنية التحتية وسلاسل الخدمات والتوريد، فإن العديد من هذه الأنظمة ربما وصلت إلى نقطة الانهيار. ويزيد التغير المناخي السريع الأمور سوءا.
في ضوء ذلك، قد لا يكون من الضروري تحديد المخاطر العالمية بحجم الكارثة التي تسببها، ولكن من خلال قدرتها على تعطيل هذه الأنظمة الحيوية.
ويمكن التقاط هذه الاحتمالية في أمثلة حدثت مؤخرا وكانت لها سلسلة تأثيرات متتابعة لاحقة، كما هي الحال مع ثوران بركان إيافيالايوكل في أيسلندا عام 2010، الذي لم يقتل أي شخص، لكنه عطل حركة الطيران فوق أوروبا لمدة ستة أيام.
وفي عام 2017، أدى الهجوم الإلكتروني "وونا كراي"، الذي كان يسعى للحصول على مبالغ فدية إلى تعطيل أجزاء من هيئة الصحة الوطنية البريطانية ومنظمات أخرى حول العالم، هلى الرغم من أنه غير متطور نسبيا.
ونظرا لأن كل شيء نعتمد عليه يعتمد أيضا على نظام كهربائي وحوسبة وإنترنت فعال، فإن كل ما يمكن أن يتسبب في تلف هذا الأنظمة، سواء بسبب التوهج الشمسي أو انفجار نووي في طبقات الجو العليا، قد يتسبب في أضرار بالغة الانتشار.
ربما تكون هناك طرقا جديدة للحد من هذا الخطر.
ثمة حكاية قديمة عن كنوت، ملك الدنماركيين، الذي حاول دفع البحر ليتراجع عن الشواطئ. يمكن لشعور مشابه بالعجز أن يسيطر علينا بسهولة عندما ننظر إلى كوارث مستقبلية محتملة.
بيد أن الحقيقة هي أن الدنماركيين نجحوا في إبعاد البحر عن الشواطئ طوال أجيال: من خلال تشييد السدود وتجفيف الأهوار لحماية أنفسهم من المد القادم.
فمن الأفضل في بعض الأحيان حماية أنفسنا عبر التفكير في طرق تجعل البشر أكثر مرونة في التعامل مع الكوارث المقبلة.
وهذا الأمر قد يمنحنا أفضل الوسائل لضمان أن عام 2019 وما بعده، ستكون آمنة لحياة البشر.
شهدت السنوات الأخيرة ظهور النمر الأسود في كل مكان، لكنْ أنْ يُرصَد هذا الحيوان -الذي سمي الفيلم الأمريكي الشهير(بلاك بانثر) باسمه- في البرية الأفريقية فذلك أمر نادر الحدوث.
وقد استطاع مصور الحياة البرية، ويل بورارد لوكاس، رصْد نمر أسود في أفريقيا، وسط مزاعم بأن هذه هي المرة الأولى التي ترصد فيها عدسة كاميرا نمرا أسود الجِلد في القارة السمراء منذ مئة عام.
ولا يوجد لهذا النوع من الحيوانات المتحفظة في الظهور سوى القليل جدًا من الصور.
وكان المصور ويل قد سمع شائعات عن وجود نمر أسود -وهي تسمية شاملة لقطّة برية كبيرة رقطاء سوداء أو نمر أرقط أسود، بناء على المكان الذي أتى منه (موطنه) في العالم - في مخيم لايكيبيا البري في كينيا.
وبعد اقتفاء أثر النمر عبر الأدغال بالاستعانة بمرشد يُدعى ستيف، استقرّ المصور ويل على مكان نصب فيه الكاميرا.
يقول ويل: "اعتدتُ على نصب الكاميرات وعدم التقاط أي صورة لأن الأمر محض تخمين - فأنت لا تعلم إذا ما كان الحيوان الذي تحاول رصْده سيمرّ في النطاق الذي سلطت عليه الكاميرات".
ولم يكن المصور ويل والمرشد ستيف متأكدين مما إذا كان الأثر الذي يقتفيانه هو للنمر الأسود أو لنمر أرقط عادي.
يقول ويل: "لم يحدث أبدًا أن فقدتُ الأمل، وبعد أول ليلتين لم تلتقط الكاميرات صورًا لهذا النمر، وكنت بدأت أعتقد أنني سأكون محظوظًا لو حصلت على صورة لنمر أرقط عادي، ناهيك عن هذا النمرالأسود". وفي الليلة الرابعة، اسعفني الحظ.
ويضيف: "لم أكد أصدق للوهلة الأولى أنني استطعت تحقيق ذلك، لقد كان أمرًا استثنائيا".
ويتابع ويل: "فيما تلتقطه هذه الكاميرات من صور مصحوبة بوميض (فلاش) عادة ما يظهر الحيوان بوضوح تام، لكن اختلاط سواد لون النمر بعتمة الليل جعلني لا أكاد أتبين سوى تلك العينين تحدقان من خلال الصورة".
ويقول نيكولاس بيلفولد، كبير الباحثين في برنامج للحفاظ على النمور في مقاطعة لايكيبيا، "طالما اعتدنا السماع عن نمور سوداء تعيش في هذه المنطقة، لكن القصص كانت تخلو من صور عالية الجودة تؤكد هذا الوجود".
ويضيف: "هذه الصور هي بالإجماع أول صور مؤكدة على مدى ما يقرب من مئة عام لنمرأسود في أفريقيا، وهذه المنطقة هي المكان الوحيد المعروف الذي يستوطنه النمر الأسود في كل أفريقيا".
ويشدد بيلفولد وفريقه على أن كلمة "مؤكدة" هنا تعني أن الصور واضحة ومستوفية للتفاصيل اللازمة لرؤية النسق المميز للنمر.
وكانت صحيفة ديلي نيشن الكينية قد التقطت صورًا لحيوان مشابه عام 2013، على الرغم من أن بيلفولد يزعم أن النمر لم يكن بريًا وأنه جُلب إلى كينيا من أمريكا عندما كان شِبْلاً.
وترك المصور ويل كاميراته في الأدغال بكينيا على أن يعود إليها في غضون أسابيع قليلة ليرى ما التقطته من صور - لكن وقت الحصول على المزيد من الصور قد انقضى.
يقول ويل: "في هذا الوقت غالبًا ما يتعرض للطرد من منطقته على يد ذكر أضخم وأقوى ويذهب باحثا عن مكان جديد - ولذلك فنحن في سباق مع الزمن للحصول على المزيد من الصور".
كيف يولدنمر أسود؟
من السهل الاعتقاد بأن النمور السوداء هي فصيلة حيوانية قائمة بذاتها، لكنْ ليس الأمر كذلك بحسب المصور ويل.
يقول ويل: "يُطلق على المادة الوراثية التي تجعل هذه النمور سوداء، اسم 'ميلانيزم' أو اسوداد الجلد، وهي مشابهة لحالة المَهَق (ابيضاض البشرة والشعر) ولكن بشكل معكوس".
ويضيف: "النمر الأسود هو بالأساس قط كبير مسودّ الجلد. وعادة ما يُطلق على القطة البرية الكبيرة المسوّدة الجلد في أفريقيا وآسيا اسم 'نمرأسود'. وفي أمريكا الجنوبية يُطلق على الفهد الأرقط المسودّ الجلد اسم فهد أسود".
وقد التقط المصور ويل صورة فهد أرقط بعدسة كاميرته. ويمكن أن يكون هذا الفهد الأرقط والد الفهد الأسود.
ولا يحتاج الأمر لفهدين أسودين لإنتاج فهد أسود، لكن الوالدين يجب أن يحملا الصفة الوراثية المتنحّية المتسببة في اسوداد الجلد أو الميلانيزم.
يقول ويل إنه من الصعب الجزم بعدد الفهود الموجودة في شرق أفريقيا، بسبب ما تتميز به من التحفظ في الظهور "ناهيك عن فصيل نادر جدا هو الفهد الأسود. وربما لا يوجد غير حفنة من الفهود السوداء في شرق أفريقيا".