Friday, October 5, 2018

गीर में ये कौन है जो ले रहा जंगल के राजा की जान

पिछले तीन हफ़्तों में गिर वन अभ्यारण में कम से कम 23 शेरों की मौत हुई है. एशियाई शेरों की प्रजाति सिर्फ़ इन्हीं जंगलों में पाई जाती है.
वन अधिकारियों ने मौत की वजह कैनाइन डिस्टेंपर वायरस और शेरों की आपसी लड़ाई को बताया.
गुजरात सरकार के मुताबिक चार शेरों की मौत सीडीवी यानी कैनाइन डिस्टेंपर वायरस की वजह से हुई है. जबकि तीन और शेर इस वायरस से पीड़ित हैं, जिन्हें एक रेस्क्यू सेंटर में अलग रखा गया है.
एक जानलेवा वायरस जिसने पूर्वी अफ्रीका के 30 फ़ीसदी शेरों की जान ले ली थी, क्या भारत के जंगल के राजा के लिए भी ख़तरा बन गया है?
राज्य वन और पर्यावरण मंत्री गणपत वसावा ने बुधवार को पत्रकारों को बताया कि पूणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी ने मारे गए 11 में से चार शेरों के सैंपल में सीडीवी वायरस और बाकी सात के सैंपल में प्रोटोज़ोआ संक्रमण पाया है.
सीडीवी वायरस 20वीं शताबदी में उस वक्त चर्चा में आया था जब इसकी वजह से थाइलासाइन (तस्मानियाई बाघों) की मौत हुई थी.
गिर में शेरों की मौत ने प्रशासन की नींद उड़ा दी है. अधिकारी सक्रिय हो गए हैं.
वाइल्डलाइफ सर्कल, जूनागढ़ के प्रमुख वन्य संरक्षक डीटी वसावाड़ा ने बीबीसी से कहा कि शेरों के लिए तुरंत विदेश से वेक्सिन मंगाई गई है.
उन्होंने कहा, "एहतियात के तौर पर हमने अमरीका से पहले ही दवाइयां और वेक्सिन मंगा ली है."
हाल ही में हुई शेरों की सभी मौतें गिर जंगल की डलखानिया रेंज के सरसिया इलाके में हुई हैं.
वन अधिकारियों ने इस क्षेत्र के सभी 23 और आस-पास के इलाके से 37 शेरों को किसी और जगह शिफ़्ट कर दिया है. अधिकारियों का दावा है कि ये सभी शेर ठीक हैं और इन्हें विशेष देखरेख में रखा गया है.
सरकार ने कम से कम 140 टीमें बना दी हैं, जो गिर के दूसरे इलाकों और ग्रेटर गिर में मौज़ूद शेरों पर नज़र रखे हुए हैं.
वाइल्डलाइफ एक्टिविस्ट और बायोलॉजिस्ट रंजन जोशी कहते हैं कि कैनाइन डिस्टेंपर वायरस बेहद ख़तरनाक होता है और ये बहुत तेज़ी से फ़ैलता है.
जोशी बताते हैं कि इस संक्रामक रोग की वजह से 1994 में तनज़ानिया के सेरेनगेटी रेंज में 10 से 15 दिनों के भीतर ही एक हज़ार शेरों की मौत हो गई थी. वो कहते हैं कि अगर ये सीडीवी वायरस है तो प्रशासन को सतर्क हो जाना चाहिए.
जोशी मानते हैं कि एशियाई शेरों को भारत के किसी दूसरे इलाके में शिफ़्ट कर देना चाहिए, क्योंकि इस संक्रामक रोग की वजह से पूरी प्रजाति के ख़त्म होने का डर है.
बीबीसी से बात करते हुए वाइल्डलाइफ बायोलॉजिस्ट भरत जेठवा ने कहा कि राज्य के वन विभाग को शेरों के इलाके में मौजूद कुत्तों का वेक्सिनेशन करना चाहिए.
वो कहते हैं कि ये वेक्सिनेशन जल्द से जल्द किया जाना चाहिए. सीडीवी वायरस से बचने के लिए शेरों का वेक्सिनेशन भी किया जाना चाहिए.
हालांकि जेठवा वन विभाग की ओर से अबतक उठाए गए कदमों की सराहना करते हैं. वो कहते हैं कि शेरों को संक्रमित इलाकों से दूर ले जाना और वक्त रहते आस-पास के इलाकों से भी शेरों को निकाल लेना सही कदम है.
डॉक्टर भरत जेठवा एक वाइल्डलाइफ बायोलॉजिस्ट और वन्यजीव विशेषज्ञ हैं. उन्होंने बीबीसी से कहा:
"कैनाइन डिस्टेंपर वायरस एक जानलेवा वायरस है. ये अक्सर कुत्ते और बिल्लियों में पाया जाता है. जो शेर इन कुत्ते बिल्लियों के संपर्क में आ जाते हैं, वो आसानी से इस वायरस की चपेट में आ जाते हैं. ये वायरस अक्सर संक्रमित जानवर का जूठा खाना खाने से फ़ैलता है. जिस इलाके में इस वायरस से संक्रमित कुत्ते-बिल्लियों हैं, वहां मौज़ूद शेरों को सीडीवी का ख़तरा बढ़ जाता है. ये एक जानलेवा वायरस है, लेकिन इससे बचने के लिए वेक्सिनेशन भी होती है. अगर उस इलाके के कुत्ते का वेक्सिनेशन कर दिया जाए तो वहां के शेरों को वायरस से बचाया जा सकता है."
स्थानीय कार्यकर्ता रंजन जोशी कहते हैं कि जंगल के बाहर आने वाले शेरों पर वो नज़र रखते हैं और उन्होंने कई बार देखा है कि शेर के शिकार को कुत्ते-बिल्लियां भी खा रहे होते हैं. ये वायरस तब फ़ैलता है जब शेर दोबारा आकर उस जूठे शिकार को खा लेता है.

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